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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
झुलस वह जाए जो
आ जाए तुम्हारी आग बरसाती
लपटों की चपेट में
ऐसा तुम्हारा रूप प्रचण्ड
पलभर में कैसा बदल जाता
बादल के आते ही।
वह जब छा जाता घटाटोप
कितना शीतल हो आता तुम्हारा स्पर्श
ओ हवा!
तुम कितना प्यार
करती हो बादल को।
</poem>
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