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<poem>

बे-सबब सिर दिवार कौन करे
हम 'अदीबों' से प्यार कौन करे!

जाईए आप,जाईए भी कि अब
खु़दकुशी बार-बार कौन करे!

बुझ गया है,तो है ख़ुदा का करम
फिर से ये दिल शरार कौन करे!

जीस्त जब ज़ख़्म-ज़ख़्म है बेहतर
फिर हक़ीमों को 'यार' कौन करे!

जिसमें आता हो डूब कर ही मज़ा
ऐसे दरिया को..'पार'..कौन करे!

तुम भी मुझ से ख़फ़ा हो मैं भी,तो
अब ये 'सोलह-सिंगार' कौन करे!

जो गया, वो 'बला-ए-ख़ुद' से गया
चल बे..चल! इन्तिज़ार कौन करे
</poem>