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{{KKRachna
|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जब भी ज़िक्रे-ग़म होता है
आँखों में हम-दम होता है
ज़्यादा बहना ठीक नहीं है
पानी, इस से कम होता है
रफ़्ता-रफ़्ता बुझता है दिल
हर दिन ये आलम होता है
तुम मजबूर मैं तनहा अच्छा
किस्सा आज ख़तम* होता है
हम तो ठहरे 'दीप' देहाती
शहरों का मौसम होता है
</poem>
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जब भी ज़िक्रे-ग़म होता है
आँखों में हम-दम होता है
ज़्यादा बहना ठीक नहीं है
पानी, इस से कम होता है
रफ़्ता-रफ़्ता बुझता है दिल
हर दिन ये आलम होता है
तुम मजबूर मैं तनहा अच्छा
किस्सा आज ख़तम* होता है
हम तो ठहरे 'दीप' देहाती
शहरों का मौसम होता है
</poem>