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धाराएं / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
वो धाराएं
ऊपर से सीधी
ह्रदय की ओर
बहती हुई
मेरे मध्य में आकर
ठहर जाती
अरू परिशोधित होकर
पुनः ऊर्ध्वगामी बन
मस्तिष्क से
प्रस्फुटित हो
बाहर प्रवाहित होती
मेरी कलम के माध्यम से
कैनवास पर आकर
ठहर जाती।
</poem>
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