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पूजा-अजान / कैलाश पण्डा

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<poem>
मंदिर की आरती
टन-टनाटन टन-टन-टन
मस्जिद की अजान
रक्तपात सम्प्रदाय भेदभाव के मध्य !
पूजन की थाली में
कंकड़ पत्थर ना डालकर
अन्तर की विकसित करते
नमाज की चादर को
मैली ना होने देते
ह्रदय के गर्भ गृह में
बजती घण्टियां
नमाज भी अदा होती
मानो जन्त उतर आता
काश खुदा को जान पाते
भगवान् को पहचान पाते
सच कहूं तो
इंसान बन पाते
वही आरती वही अजान
क्रमशः चलती रहती सोचो
एक दिन जीवन का अवसान
काश होती आरती
बन पाती अजान
तब तो टन-टनाटन टन-टन-टन-टन।
</poem>
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