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झर-झर कंथा.. / करणीदान बारहठ

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<poem>
परभात री किरणां
सामटै ही अंधेरै री डोरी
आभै रो आंचल
पलकावै हो ज्यूं
टाबर री दूधिया हंसी
हूं खोग्यो हो
आंधी में विचारां री
ढूंढै हो मिलै कठई
म्हारी मनसा री चीज
इयां करूं बियां करूं
कियां करूं ?
आ मिनख री देह
चल ज्यासी
एक दिन
रह ज्यासी
राख री ढेरी
रह ज्याी
मनसा अधूरी
तोड़ द्यूं फोड़ द्यूं
मरोड़ द्यूं
पूरी करल्यूं
अपणी अधूरी आस
मंडेरी पै बैठी
कमेड़ी बोली
‘क्यूं म्यूं म्यूं
चाल जीवड़ा
उठज्या
खींच ले राह री
लांबी डोर
कठै ही मिलैली
खिलैला
हिवड़े रा फूल
झूलै झूलैली
आंख्यां री कोर
तापण लाग्यो
जोबन रो सूरजड़ो
उकसण लागी
दूर आभै में
बादल री क्यारियां
बोली टीटूडी
‘तीसी हूं तीसी हूं’
तिस नहीं मिटी तेरी गूंगी
चावै है स्वाति बूंद
मन म्हारलै ही मिलादी
राग में राग
‘तीसो हूं, तीसो हूं’
घटा ऊमड़ी
गाजण लागी
काली काली
घिरग्यो आकाश रो चबूतरो
मोर बोलियो
‘पीहूं पीहूं’
हूं बोल्यो ‘हूं ही पीहूं’
छिण मिण छिण मिण
ओसरगी छांटडल्यां
पूंचग्यो हूं
जठै झर झर झर
झरै हो परबत
स्यूं झरणो
हूं मन में बोल्यो
थामले जे
थाम सकै
अठै ही तेरो काळजो
मन नहीं मान्यो
भाग स्यूं निकली
बठै एक जोगण
बोली
‘मिनख री देह मांग’
हूं बोल्यो
दे दे मनै एक
‘मनसा पूरी’
बोली
आ ले
‘झर-झर कंथा’
देसी तनै मनसा री चीज
पण झाड़ी बीं
धूड़ में जीं
धूड़ में मरेड़ै री धूड़ रो
अंश नहीं
हूं ले चाल्यो
झर-झर कंथा
उमड़ आयी हिवड़ै में हूल
पूंच्यो
टीबां टीबां
डेर्यां डेर्यां, परबत परबत
कूंचा कूंचा
ऊंचा नीचा
झाडू जठै बोलै
हूं देखूं हूं ओलै
म्हारी देह पर
मत झाड़ रे
झर-झर कंथा
निराशा री अंधड़ स्यूं
घिरग्यो
म्हारे मन रो सूवटो
गाड़ दी जमीं में
झर-झर कंथा
गेरदी आंसू री
दो बूंद
उगि आया बठै
दो फूल
एक करम रो
एक सबर रो
सीखग्यो हू
जीवण रो पाठ
‘करम कर सबर कर’
‘करम कर सबर कर’
‘करम कर सबर कर’
</poem>
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