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<poem>
जो तेरा है वो तुझ तक
इक दिन आएगा ही आएगा
जीवन की विपदाएँ कभी ,
घेरे रहतीं जब निज मन को ,
तब चीर हृदय के सघन तम,
विस्तार लिए अरुणिमा सम ,
अनुप्राण जगा,अनुरीति सजा ,
उत्थान को ही अनुष्ठान बना ,
ज्योति पुंज ,अनुमिति लिए
उठाना होगा ,बढ़ना होगा ....... !!
रे मन तुझको काँटों पर भी ,
जीवन रहते चलना होगा ,
खिलना होगा ,मुस्कान लिए,
चलते ही रहना होगा.......!!
कंटीली सी हो पगडण्डी अगर ,
बना तब अपनी स्वयं डगर,
बढ़ता ही जा न थम मगर ,
अपने क़दमों का दिशा बोध
चुनना होगा चलना होगा
रे मन तुझको काँटों पर भी
जीवन रहते चलना होगा !!
अब नींद कहाँ अब चैन कहाँ
क्यों सपनो में खोया है तू ,
जब मुश्किल घड़ियाँ बीत गयीं,
किस उलझन में रोया है तू ,
उठ जाग के मौन भी व्याकुल है ,
गाती है भोर भी रागिनी ,
चहके पंछी फिर बन बन में,
अमुवा कोयलिया कूक रही ,
रजनीगंधा फिर सुरभिमय ,
फिर से ही आस घिरी मन में,
फिर गुड़हल की रक्तिम आभा ,
व्याप्त हुई है प्रांगण में
उठ जाग के वंदन की बेला
झर झर अमृत बरसाय रही ,
उजले शब्दों में यूँ खिलकर
भावों का घूंघट खोल रही
अब समय है परचम तू लहरा ,
गुण देश के गा ले गीतों में ,
सत्कर्मो का साक्षी तू बन जा ,
तब गर्व बसे यूँ सीने में !!
जग में तेरे ही गुंजन से
नाद खिलेगी वन उपवन
भवरों की साँसों में फिर से
पहुंचेगी सुरभि बन सुमन
फिर तेरे ही अभिक्रम से ,
अभंजित रहेगा मन का कोना
अभिकांक्षित शोभा पायेगी
रत्नजटित स्वर्णिम अब्जा !!
जो तेरा है वो तुझ तक
इक दिन आएगा ही आएगा
अपने क़दमों का दिशा बोध
चुनना होगा चलना होगा
रे मन तुझको संघर्षों के पार
पुनः खिलाना होगा !!
रे मन तुझको संघर्षों के पार
पुनः खिलाना होगा !!
</poem>
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जो तेरा है वो तुझ तक
इक दिन आएगा ही आएगा
जीवन की विपदाएँ कभी ,
घेरे रहतीं जब निज मन को ,
तब चीर हृदय के सघन तम,
विस्तार लिए अरुणिमा सम ,
अनुप्राण जगा,अनुरीति सजा ,
उत्थान को ही अनुष्ठान बना ,
ज्योति पुंज ,अनुमिति लिए
उठाना होगा ,बढ़ना होगा ....... !!
रे मन तुझको काँटों पर भी ,
जीवन रहते चलना होगा ,
खिलना होगा ,मुस्कान लिए,
चलते ही रहना होगा.......!!
कंटीली सी हो पगडण्डी अगर ,
बना तब अपनी स्वयं डगर,
बढ़ता ही जा न थम मगर ,
अपने क़दमों का दिशा बोध
चुनना होगा चलना होगा
रे मन तुझको काँटों पर भी
जीवन रहते चलना होगा !!
अब नींद कहाँ अब चैन कहाँ
क्यों सपनो में खोया है तू ,
जब मुश्किल घड़ियाँ बीत गयीं,
किस उलझन में रोया है तू ,
उठ जाग के मौन भी व्याकुल है ,
गाती है भोर भी रागिनी ,
चहके पंछी फिर बन बन में,
अमुवा कोयलिया कूक रही ,
रजनीगंधा फिर सुरभिमय ,
फिर से ही आस घिरी मन में,
फिर गुड़हल की रक्तिम आभा ,
व्याप्त हुई है प्रांगण में
उठ जाग के वंदन की बेला
झर झर अमृत बरसाय रही ,
उजले शब्दों में यूँ खिलकर
भावों का घूंघट खोल रही
अब समय है परचम तू लहरा ,
गुण देश के गा ले गीतों में ,
सत्कर्मो का साक्षी तू बन जा ,
तब गर्व बसे यूँ सीने में !!
जग में तेरे ही गुंजन से
नाद खिलेगी वन उपवन
भवरों की साँसों में फिर से
पहुंचेगी सुरभि बन सुमन
फिर तेरे ही अभिक्रम से ,
अभंजित रहेगा मन का कोना
अभिकांक्षित शोभा पायेगी
रत्नजटित स्वर्णिम अब्जा !!
जो तेरा है वो तुझ तक
इक दिन आएगा ही आएगा
अपने क़दमों का दिशा बोध
चुनना होगा चलना होगा
रे मन तुझको संघर्षों के पार
पुनः खिलाना होगा !!
रे मन तुझको संघर्षों के पार
पुनः खिलाना होगा !!
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