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Kavita Kosh से
तुम होतीं तो पसीना पोंछती कहतीं
कितनी गरमी है -- उफ़
नहा लेते फिर तो अच्छा होता
कि कितनी गरमी है आज
और बांहों बाँहों में उठा
पास के बिस्तर पर लिटा देता
कि अब सोओ तुम
मैं पंखा झल दूंदूँ
तुम्हें नींद आने को होती
कि चूम लेता मैं
और मुझे पास खींचती