भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फुटकर शेर / ग़ालिब

5 bytes removed, 14:56, 21 जनवरी 2018
1.हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
 
2.यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।
 
3.हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है।
 
4.उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है।
 
5.इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,137
edits