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'''मैं घर लौटा पर मेरी प्रतिक्रिया ..सुनीता काम्बोज''' मैं घर लौटा कविता संग्रह श्री रामेश्वर काम्बोज "हिमांशु" जी द्वारा रचित अति उत्तम कृति हैं। इस संग्रह पर प्रतिक्रिया देने के लिए मेरा साहित्यिक कद अभी बहुत छोटा है फिर भी मैंने अपनी नन्ही कलम से इस पुस्तक पर प्रतिक्रिया देने का प्रयास किया है। श्री हिमांशु जी स्थापित साहित्यकार हैं आपके व्यंग्य, लघुकथाओं, हाइकु, माहिया, ताँका चौका, बाल साहित्य आदि विधाओं की अदभुत कशिश ने हमेशा पाठक मन को तृप्ति प्रदान की है। आज 'मैं घर लौटा' काव्य-संग्रह पढ़कर मन भाव विभोर हो गया। आपके साहित्यिक अनुभव इस संग्रह की हर रचना से झरता हुआ प्रतीत होते हैं। अनुभव, भावों व शिल्प की सुगंध से परिपूर्ण ये रचनाएँ नवोदित रचनाकारों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करेंगी। गद्य के साथ-साथ पद्य पर इतनी धीरता व गम्भीरता से सर्जन करना साधरण बात नहीं है। हर विधा में पूर्णता आपकी विलक्षण प्रतिभा को दर्शाती है। जब मैं मैंने इस संग्रह की प्रथम रचना पढ़ी तो ऐसे लगा मानो काव्य-सरोवर के कमल पुष्पों को स्पर्श कर लिया हो। पहली रचना के कुछ अंश- अन्धकार ये कैसा छाया
सूरज भी रह गया सहमकर
कवि मन के ये उद्गागार पढ़कर आशाओं और साहस का समन्दर आगे तैरने लगा। अगले बन्ध में जैसे अँधेरों की आँख में आँख मिलाकर जब कवि ने यह कहकर मन अग्र्व और उत्साह से भर दिया- दरबारों में हाजिर होकर,गीत नहीं हम गाने वाले चरण चूमना नहीं है आदत,ना हम शीश झुकाने वाले मेहनत की सूखी रोटी भी,हमने खाई है गा -गा कर आज कवि वर्ग के लिए सार्थक सन्देश देते हुए कवि ने मेहनत को अपनी पतवार बनाया है । है। ये रचनाएँ जिस पाठक तक जाएँगी उसके अंतर्मन को अवश्य छू लेंगीं । लेंगीं। खुद्दारी की महक और सकारत्मक दृष्टिकोण रखती इस कविता में जिस अंधकार को सूरज भी सहम गया उसे चुनौती दे कर निराश मानवता में साहस भरा है।अपना है। अपना मन,अमलतास , आजादी है सभी रचनाओं का सौन्दर्य अपनी और आकर्षित करता है- गुंडे छूटे,जीभर लूटे, आजादी है छीना चन्दा,अच्छा धन्धा,आजादी है आज पुजारी,बने जुआरी ,आजादी है ढोंगी बाबा ,अच्छा ढाबा ,आजादी है ऐसा लगता है इस रचना में आज के परिवेश की तस्वीर खींच दी हो,कवि ने बड़ी निर्भीकता से वर्तमान स्थिति पर प्रहार किया है । है। यही सच्चे रचनाकार की पहचान है कि वो वह समाज और सत्ता जो दर्पण दिखलाते रहें । रहें। रात और दिन काम ही काम
आराम न भाया
मेहनतकश जीवन की कहानी जीवन की कशमश, व्यकुलता और पूर्णता हर रंग इस रचना में समाहित मिला। आराम न भाया रचना जीवन की किताब जैसी लगती है । है। संदेशात्मक, प्राकृतिक सौन्दर्य, गहन संवेदना,रागात्मकता से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचनाएँ मन पर गहरी छाप छोड़ती हैं ।ऐसे हैं। ऐसे लगता है ये कविता जीवन की कड़क धूप में ठंडी छाँव प्रदान कर रही हैं ।हैं। मानवता और दानवता दोनों मानव मन में विधमान है ये निर्णय मानव को लेना है कि उसे किस रास्ते पर जाना है । है। रचना का ये बन्ध ह्रदय यही बात उजागर कर रहा है- मानव और दानव में यूँ तो,भेद नजर नहीं आएगा एक पोंछता बहते आँसू ,जी भर एक रुलाएगा आज मनुष्य एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में यही सब कर रहा है । है। वास्तविकता यही है की कि केवल कर्मों से ही मानवता का अनुमान लगाया जाएगा । जाएगा। मानव और दानव का अंतर केवल उसके कर्म ही निर्धारित करते हैं वही उसे एक दूसरे से भिन्न करता है। संस्कार और परम्पराएँ ,रिश्ते की गरिमा हमे जीवन के सही अर्थ समझाते हैं तुम बोना काँटे, तुम मत घबराना,दिया जलता रहे सभी रचनाएँ जीवन की सच्चाई से रू-ब-रू करवाती हैं ।रचनाओं हैं। रचनाओं की लयबद्धता उन्हें जिह्वा पर स्थापित कर देती है । है।
कवि के ह्रदय में विरह के बाद मिलन का सुख और विरह की पीड़ा इस रचना में समाई हुई है-
कितना अच्छा होता जो तुम
यूँ वर्षो पहले मिल जाते
सच मानों मन के आँगन में
फिर फूल हजारों खिल जाते
ख़ुशबू से भर जाता आँगन
प्रसन्नता में छुपी उदासी का संजीव चित्रण इस कविता की सुंदरता को कई गुना कर गया । गया। रचना में मिलन सुख और वेदना दोनों रूप है । है। विलम्ब के उपरांत मिलन का सुख भी विरह के दर्द नहीं भुला पाता ।पाता। रिश्तों से ही जीवन आनन्दमय होता है बहन भाई के पावन स्नेह की डोर उन्हें आजीवन बाँधे रखती है ये निच्छल प्रेम अतुलनीय है ।है। सारे जहाँ का प्यार हैं बहनें
गरिमा रूप साकार है बहनें
बँधा रेशमी धागों से जो
अटूट प्यार का तार है बहनें
कवि के इन भावों में जैसे सारे संसार का सुख समा गया हो । हो। रिश्तों का माधुर्य, सुकोमलता,आत्मीयता स्नेह की वर्षा कर रही है । है। गुलमोहर की छाँव ,जंगल -जंगल रचनाएँ एक बार पढ़कर बार -बार पढ़ने को मन करता है । है। यही छंद सौन्दर्य का आकर्षण होता है । है। पुरबिया मजदूर कविता के माध्यम से जनमानस मजदूर वर्ग की कठिनाइयों और पीड़ा को महसूस कर रहा है । है। यही इस संग्रह की सफलता है कि रचना जिस भावना से रचना लिखी गई उस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है ।है।‘मेरी माँ’ 'मेरी माँ' रचना के एक -एक शब्द में माँ की छवि नजर आती है ।है।
चिड़ियों के जगने से पहले
जग जाती है मेरी माँ
माँ का स्नेह ममता , माँ की मनोभावना मैं इस रचना को माँ की तस्वीर कहूँगी । कहूँगी। माँ को कवि ने माँ को सबसे बड़ा तीर्थ कह कर जैसे कविता से माँ की आराधना की हो मैं कवि की इस भावना को नमन करती हूँ ।हूँ। सुख दुख जीवन की गाड़ी के पहिए हैं; परन्तु कवि ने दुःख और अँधेरे से लड़ने का साहस इस कविता के माध्यम से दिया है जो सरहानीय है ।है।
अँधियारे के सीने पर हम
शत शत दीप जलाए
दिल में दर्द बहुत है माना
सुनीता काम्बोज