भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} [[Category:ग़ज़ल]] गई हैं रूठ कर जाने ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
गई हैं रूठ कर जाने कहाँ वो चाँदनी रातें
हुआ करती थीं तुम से जब वो पनघट पर मुलाक़ातें
ये बोझल पल जुदाई के ये फ़ुरक़त की स्याह रातें
महब्बत में मुक़द्दर ने हमें दी हैं ये सौग़ातें
पुरानी बात है लेकिन तुम्हें भी याद हो शायद
बहारों के सुनहरे पल महब्बत की हसीं रातें
यूँ ही रूठी रहोगी हम से अय जान—ए—ग़ज़ल कब तक
हक़ीक़त कब बनेंगी तुम से सपनों की मुलाक़ातें
मैं वो सहरा हूँ ‘साग़र’! जिस पे बिन बरसे गए बादल
न जाने किस समंदर पर हुई हैं अब वो बरसातें
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
गई हैं रूठ कर जाने कहाँ वो चाँदनी रातें
हुआ करती थीं तुम से जब वो पनघट पर मुलाक़ातें
ये बोझल पल जुदाई के ये फ़ुरक़त की स्याह रातें
महब्बत में मुक़द्दर ने हमें दी हैं ये सौग़ातें
पुरानी बात है लेकिन तुम्हें भी याद हो शायद
बहारों के सुनहरे पल महब्बत की हसीं रातें
यूँ ही रूठी रहोगी हम से अय जान—ए—ग़ज़ल कब तक
हक़ीक़त कब बनेंगी तुम से सपनों की मुलाक़ातें
मैं वो सहरा हूँ ‘साग़र’! जिस पे बिन बरसे गए बादल
न जाने किस समंदर पर हुई हैं अब वो बरसातें