भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} [[Category:ग़ज़ल]] है शाम—ए—इन्तज़ार...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
है शाम—ए—इन्तज़ार अजब बेकली की शाम
इतनी उदास तो न हो यारब ! किसी की शाम
आई जो दिन ढले ही किसी बेवफ़ा की याद
शाम—ए—फ़िराक़ बन गई है बन्दगी की शाम
महरूमियों कई आग में तन्हा जला हूँ मैं
बीते भी युग मगर न हुई ज़िन्दगी की शाम
ओझल हुआ मैं उनकी नज़र से तो यूँ लगा
थी कितनी पुरसुकून वो उसकी गली शाम
फ़ितरत जुदा—जुदा है मिलें भी तो किस तरह
मैं सुबह हूँ ख़ुलूस की वो बेरुख़ी की शाम
अहल—ए—चमन ने सुबह—ए—मसर्रत के नाम से
बख़्शी है हमको यारो ! ग़म—ओ—बेबसी की शाम
मैं ख़ुद को भूल जाऊँ तो शयद मिले क़रार
मेरे नसीब में है कहाँ बेखुदी की शाम
कुछ इन्तज़ाम—ए—जाम करो अब तो हमदमो!
डसने लगी है रूह को फिर बेबसी की शाम
सपनों के गाँओं बस के उजड़ते चले गये
‘साग़र’ ! न मिल सकी मुझे इक भी ख़ुशी की शाम
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
है शाम—ए—इन्तज़ार अजब बेकली की शाम
इतनी उदास तो न हो यारब ! किसी की शाम
आई जो दिन ढले ही किसी बेवफ़ा की याद
शाम—ए—फ़िराक़ बन गई है बन्दगी की शाम
महरूमियों कई आग में तन्हा जला हूँ मैं
बीते भी युग मगर न हुई ज़िन्दगी की शाम
ओझल हुआ मैं उनकी नज़र से तो यूँ लगा
थी कितनी पुरसुकून वो उसकी गली शाम
फ़ितरत जुदा—जुदा है मिलें भी तो किस तरह
मैं सुबह हूँ ख़ुलूस की वो बेरुख़ी की शाम
अहल—ए—चमन ने सुबह—ए—मसर्रत के नाम से
बख़्शी है हमको यारो ! ग़म—ओ—बेबसी की शाम
मैं ख़ुद को भूल जाऊँ तो शयद मिले क़रार
मेरे नसीब में है कहाँ बेखुदी की शाम
कुछ इन्तज़ाम—ए—जाम करो अब तो हमदमो!
डसने लगी है रूह को फिर बेबसी की शाम
सपनों के गाँओं बस के उजड़ते चले गये
‘साग़र’ ! न मिल सकी मुझे इक भी ख़ुशी की शाम