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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
अब क्या बताएँ क्या हुए चिड़ियों के घौंसले
तूफ़ाँ की नज़्र हो गए चिड़ियों के घौंसले
हर घर के ही दरीचों छतों में छुपे हैं साँप
महफ़ूज़ अब नहीं रहे चिड़ियों के घौंसले
पीपल के उस दरख़्त के कटने की देर थी
आबाद फिर न हो सके चिड़ियों के घौंसले
जब से हुए हैं सूखे से खलिहान बे—अनाज
लगते हैं कुछ उदास— से चिड़ियों के घौंसले
बढ़ता ही जा रहा है जो धरती पे दिन—ब—दिन
उस शोर—ओ—गुल में खो गये चिड़ियों के घौंसले
पतझड़ में कुछ लुटे तो कुछ उजड़े बहार में
सपनों की बात हो गये चिड़ियों के घौंसले
बनने लगे हैं जब से मकाँ कंकरीट के
तब से हैं दर—ब—दर हुए चिड़ियों के घौंसले
तारीख़ है गवाह कि फूले —फले बहुत
जो आँधियों से बच गए चिड़ियों के घौंसले
जब बज उठा शह्र की किसी मिल का सायरन
‘साग़र’ को याद आ गये चिड़ियों के घौंसले
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
अब क्या बताएँ क्या हुए चिड़ियों के घौंसले
तूफ़ाँ की नज़्र हो गए चिड़ियों के घौंसले
हर घर के ही दरीचों छतों में छुपे हैं साँप
महफ़ूज़ अब नहीं रहे चिड़ियों के घौंसले
पीपल के उस दरख़्त के कटने की देर थी
आबाद फिर न हो सके चिड़ियों के घौंसले
जब से हुए हैं सूखे से खलिहान बे—अनाज
लगते हैं कुछ उदास— से चिड़ियों के घौंसले
बढ़ता ही जा रहा है जो धरती पे दिन—ब—दिन
उस शोर—ओ—गुल में खो गये चिड़ियों के घौंसले
पतझड़ में कुछ लुटे तो कुछ उजड़े बहार में
सपनों की बात हो गये चिड़ियों के घौंसले
बनने लगे हैं जब से मकाँ कंकरीट के
तब से हैं दर—ब—दर हुए चिड़ियों के घौंसले
तारीख़ है गवाह कि फूले —फले बहुत
जो आँधियों से बच गए चिड़ियों के घौंसले
जब बज उठा शह्र की किसी मिल का सायरन
‘साग़र’ को याद आ गये चिड़ियों के घौंसले