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Kavita Kosh से
पास खड़े
भइया मुसकायें
भौजी फंसीफँसी-फंसी फँसी सी
देहरी पर
निगरानी करतीं
बुढ़ियों वाले दिन
बाहर लाठी-मूंछेंमूँछें
और पगड़ियों वाले दिन
बंजारन
चक्का खूब घुमाये
दाब दांत दाँत के बीच कटारी
मंद-मंद मुसकाये
पूरा गली-मोहल्ला
छुपा है ‘बीरू’
दरवाजे के पीछे
चाचा ढूंढ़ ढूँढ रहे हैं
बटुआ फिर
तकिया के नीचे
इस जीवन में
कुछ भी कमा न पाये
फिर से वो
मंदड़ियों वाले दिन
-‘शोले’ हिंदी सिने जगत की सफलतम फिल्म
-‘वीररू’ ‘वीरू’ फिल्म का नायक
-‘हवा महल’ आकाशवाणी की लोकप्रिय नाटिका
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