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गांव / ओम पुरोहित कागद

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<poem>
दुहागण रो जायोड़ो,
गेलड़!
जको
न नूंवै बाप नै जचै
न पुराणै नै
अर
मा रै मोटी आफत
ना छोड सकै
ना राख सकै।
इण खातर बापड़ो
पड्यो है दूर—दूर
अळगो
आंतरो
थावसी
तपसी
मोडै री जात रो एकलो!
</poem>
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