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ओळ्यूं : अेक / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
थूं हो
जद
स्सौ' कीं हो

अबै
थूं कोनी
तद
आंगणौ सूनौ
गळियां सूनी
रूंखां माथै बैठी
चिड़कल्यां ई मून है

तुळछी पडग़ी पीळी
तोवौ भूल्यौ हांसणौ
फूलां छोड्यौ खिलणौ
काईं ठा' किन्नै चली गई
आं' री सौरम ई

अबै
नां तितल्यां आवै
नां भौंरा गुणगुणावै
कियां कटसी जिनगी
सरणाटौ नीं सुहावै

अबै
मनड़ौ भरमावै
बस
थारी ओळ्यूं आवै।
</poem>
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