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नूंवौं सूरज / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
आओ
आपां नूंवौं सूरज ल्यावां
अर अंधारौ मिटावां

सूत्यां नै तो
सगळाई जगावै
पण आपां
जाग्योड़ां नै जगावां।
</poem>
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