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पोथ्यां : दोय / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
पैली
बां'रै घर री
बैठक मांय
हुंवती पोथ्यां

बैठक सूं
स्टोर री
अलमार्यां में आयगी

पछै
सगळी पोथ्यां री
बंधगी पांड
अर पूगगी टांड

बै' आपरी पोथ्यां
दान में देवणौ चांवता
किणी पोथी खानै नै

पण
अबै
अेक कबाडिय़ौ आयौ
अर
लेयग्यौ तौल रै भाव।
</poem>
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