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सुपणां / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
सुपणां मांय
म्हूं कदी उडूं अकासां
अर
कदी चल्यौ जावूं
पताळ में अचाणचकौई

म्हूं सोचूं
कै
खुद री
मरजी रा
सुपणां ई नीं लेय सकूं
आखी रात।
</poem>
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