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थारै लारै / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
हळ-बळद जोत
खेतां
ऊमरा काडै
थूं।

कलम खोल
कोरै पांनै
आखर मांडूं
म्हैं।

ऊमरां में निपजै
धांन
आखरां में उपजै
मांन।

गुमांन रै गोखां
बधतौ
ठौड़-ठौड़ बधाईजूं
म्हैं
पण
म्हारौ मांन हारै
थारै लारै।
</poem>
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