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{{KKRachna
|रचनाकार=[[मीठेश निर्मोही]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
धरती-आभै
जितरी लांठी
थारी
कद काठी।
बावळ सरीसौ
थारौ
सांस।
समदर नै उनमांन
पसराव।
नीं थाकै
नीं हारै
थूं।
वाह रे
थळवट रा उमराव!
</poem>
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धरती-आभै
जितरी लांठी
थारी
कद काठी।
बावळ सरीसौ
थारौ
सांस।
समदर नै उनमांन
पसराव।
नीं थाकै
नीं हारै
थूं।
वाह रे
थळवट रा उमराव!
</poem>