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|रचनाकार=मानोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=उन्मेष
}}
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<poem>
दोस्त बन कर मुकर गया कोई
अपने दिल ही से डर गया कोई
आँख में है अभी भी परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई
एक आलम को छोड़ कर हैरां
ख़ामुशी से गुज़र गया कोई
हो के बर्बाद उधर से लौटा था
जाने क्यों फिर उधर गया कोई
"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई
</poem>
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|रचनाकार=मानोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=उन्मेष
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दोस्त बन कर मुकर गया कोई
अपने दिल ही से डर गया कोई
आँख में है अभी भी परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई
एक आलम को छोड़ कर हैरां
ख़ामुशी से गुज़र गया कोई
हो के बर्बाद उधर से लौटा था
जाने क्यों फिर उधर गया कोई
"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई
</poem>