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Kavita Kosh से
मैं अपनी उम्र से छोटा दिखाई देता था
बड़े—बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं
कुएँ में छुप के आख़िर क्यों ये नेकी बैठ जाती है
मुझे इतना सताया है मरे अपने अज़ीज़ों ने
कि अब जंगल भला लगता है घर अच्छा नहीं लगता