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नमक में हींग में हल्दी में आ गई हो तुम।
उदर की राह से धमनी में आ गई हो तुम।
मेरे दिमाग से दिल में उतर तो आई हो,
महल को छोड़ के झुग्गी में आ गई हो तुम।
 
ज़रा सा पी के ही तन मन नशे में झूम उठा,
क़सम से आज तो पानी में आ गई हो तुम।
 
हरे पहाड़, ढलानें, ये घाटियाँ गहरी,
लगा शिफॉन की साड़ी में आ गई हो तुम।
 
बदन पिघल के मेरा बह रहा सनम ऐसे,
ज्यूँ अब के बार की गर्मी में आ गई हो तुम।
 
चमक वही, वो गरजना, तुरंत ही बारिश,
खफ़ा हुई तो ज्यूँ बदली में आ गई हो तुम।
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