भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शर्त / कल्पना सिंह-चिटनिस

1,624 bytes added, 16:02, 27 अप्रैल 2018
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस
|अनुवादक=
|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आशंका, अनिश्चितता,
असमर्थता, अपूर्णता,
ज़िन्दगी का लिबास पहने
हर जगह।

असमर्थ जिसे रोकने में
देश, काल, सीमा, शक्ति सब।
क्यों अधीन होते जा रहे हम इनके?
क्यों घिर रहे इनके अँधेरे साये में?

नहीं...
आओ उठें अब,
कहीं से रोशनी ढूंढ लायें,
सम्हालें अपने बिखरे अस्तित्व को,
धोयें रिसते ज़ख्मों को,
बांधें हादसे की उमड़ती
पागल नदियों को।

हमारी प्रतिक्रिया पर
आघात तो करेंगी ये,
चोट लगेगी,
ज़ख्म भी मिलेगा।

पर याद रहे,
जिस्म से टपका
हर कतरा
लहू का नहीं,
रोशनी का हो।

ज़िंदा रहने की शर्त
शहादत है।

*****

(अफ़्रीकी कवि बेंजामिन मोलॉइसे के लिए)



</poem>
Mover, Reupload, Uploader
10,371
edits