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Kavita Kosh से
मनुज बनकर दानवों की ओ वकालत करने वालों !
मेरे भरतू का बचपन, पिता का दुलार लौटा दो॥'''
4
'''सूखा खेत बरसती बदली हूँ मैं'''
आसुरी शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
निकलने तो दीजिए मुझे नीड़ से
ये मत पूछना कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
5
'''फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली हूँ मैं'''
उमड़े तूफ़ानों से निकली हूँ मैं ।
असीम अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत कहना कि पगली हूँ मै॥
6
'''गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं'''
तभी तो यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका फहराने दो
अभी तो बस घर से चली हूँ मैं ॥
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'''