भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
॥बनारसी लय॥
तोहसे यार मिलै के खातिर सौ-सौ तार लगाईला॥
नई समाजन की बक-बक सुनि सुनि घबराईला।
पिया प्रेमघन मन तजि तोहके कतहुँ न पाईला हो॥12॥
॥दूसरी॥
हम तो खोजि-खोजि चौकाली चिड़िया रोज फँसाईला।
जहाँ देखि आई, मुनि पाई, बसि डटि जाईला हो॥
चोखा चारा चाह, जतन कै जाल बिछाईला।
पट्टी टट्टी ओट नैन कै चोट चलाईला हो॥
कम्पा दाम लगाईला, चटपट खिड़पाईला॥
यार प्रेमघन! यही तार में सगतौं धाईला हो॥5॥
॥तीसरी॥
बहरी ओर जाय बूटी कै रगड़ा रोज लगाईला॥
बूटी छान, असनान, ध्यान कै, पान चबाईला।
डण्ड पेल चेलन के कुस्ती खूब लड़ाईला हो॥
बैरिन सारन देखतहीं घुइरी, गुराईला।
त्यूरी बदलत भर मैं लै हरबा सटि जाईला हो॥
कैसौ अफलातून होय नहिं तनिक डेराईला।
गरू प्रेमघन! यारन के संग लहर उड़ाईला हो॥16॥
</poem>