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Kavita Kosh से
:::दामिनी की चमक क्षण में,
:जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गये गए ये दूर-न्यारे !
:::शीत में, पर, मौन गलता,
:हट गये ये उस जगह से, हो गये गए बिलकुल किनारे !