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{{KKCatKavita}}
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{{KKGlobal}}आज कितना गर्म मौसम! {{KKRachnaजल रहा है फूल का तन|रचनाकार=कमलकांत सक्सेना|अनुवादक=|संग्रह=ऋजुता / कमलकांत सक्सेना}}{{KKCatKavita}}<poem>और आंचित हो रहा मन!
</poem>सांस व्याकुल हो रही क्यों? आस धीरज खो रही क्यों? नीड़ में हलचल अजब हैआंख रस कण बो रही क्यों? मीत कब आकार होंगे? स्वप्न कब साकार होंगे? ढेर सारे ऊगते प्रश्नऔर शंकित हो रहा मन! आज कितना गर्म मौसम!  आग धधकी है गगन मेंधूल उड़ती है पवन मेंप्यास धरती की बढ़ी हैराखजमती है हवन में। गुम गया गौरव अकिंचनप्राण किसको दे समर्पण? हैं अपशकुन ही अपशकुनऔर शापित हो रहा मन! आज कितना गर्म मौसम!  मौन कहते हैं कथाएँकौन समझे ये व्यथाएँ? शब्द ही जब साथ छोड़ेकाव्य कैसे हों ऋचाएँ। गीत धारा मोड़ना हैधार से तट जोड़ना हैसर्जना है व्याकरण प्रणऔर कंपित हो रहा मन! आज कितना गर्म मौसम!  कुलबुलाती भावनाएँकसमसाती कामनाएँगुनगुनाने के लिए हीकुनमुनाती कल्पनाएँ। विश्वास की अपनी डगरहैं आस्थाएँ भी अमरव्याप्त कण-कण में प्रकम्पनऔर प्रेरित हो रहा मन! आज कितना गर्म मौसम! </poem>
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