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एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे। आएंगे
घोंसले की लड़ाई, तब शुरू हुई थी। थी जब अंडे से बाहर ही निकले थे। थेचुग्गे को लेकर, दूसरी बार नोकझोंक हुई थी शायद। शायदचिड़ी दंपत्ति ने नजरअंदाज कर दिया। दिया स्वभावतः यह बालपन का बर्ताव जो ठहरा। फिर उड़ने की अपनी-अपनी लालसा। अपना-अपना सामर्थ्य। संगत साथी के चुनाव में भी भिन्नता। अब टकराव की स्थिति, रोज ही पैदा हो जाया करती। दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था, लड़ाई का स्वरूप। और इन सबके बीच दंपत्ति मूकदर्शक। ठहरा
फिर उड़ने की अपनी-अपनी लालसाअपना-अपना सामर्थ्य संगत साथी के चुनाव में भी भिन्नताअब टकराव की स्थिति रोज ही पैदा हो जाया करती दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था लड़ाई का स्वरूपऔर इन सबके बीच दंपत्ति मूकदर्शक किंतु मन का विश्वास। विश्वास एक दिन परिंदे घर को लौट आएंगे। आएंगे
उस दिन अचानक ही तो, पूरा आकाश पटा पड़ा था, चक्कर काटते परिंदों के करुण क्रंदन से। से जब निर्जन वन में, छिड़ चुकी थी भीषण लड़ाईदोनों किशोरवय के बीच। तीक्ष्ण, नुकीले चोंच के निर्मम प्रहार सेपरस्पर नोंच डाले गए उनके रोंए. लहूलुहान पंख। पैर से बहता खून। और इन दो के बीच बचाव मेंपूरा पक्षी समूह घायल। गर्जन तर्जन के मध्य, एक दूसरे को नष्ट कर देने की उनकी जिद नेपूर्णरूपेण ही बदल डाला था, जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य, उनका हरापनऔर उनकी सीमित परिधि को भी। तभी तो, बँट चुका है पूरा जंगल, दो खेमों में। और अब जारी हो चुकी है, खेमों की लड़ाई.
सक्षम खेमे ने युद्ध क्षेत्र में अद्भुत शौर्य का परचम लहराया है आपको मालूम ........उसने संगठित होकर दूसरे खेमे के पेड़ ही गिरा डाले हैं कमजोर पड़ता खेमादूसरे जंगल को पलायन कर चुका है किंतु जिसे आप खत्म समझ रहे हैं कहानी वहीं से शुरू होती है दो परिंदों से शुरू हुई इस लड़ाई की जद में आ चुके हैं दो जंगल और अब दो जंगलों में खूनी संघर्ष जारी है पहले विष के बीज रोपित हुए थे अब कटीले पेड़ उग रहे हैं जहरीले फल लग रहे हैं और जहर का सैलाब चल पड़ा है सैकड़ों क्षत-विक्षत शव जंगल में बिखरे पड़े हैं उनकी सरांध पूरे जंगल में फैली है इसी जंगल में जीवन के अंतिम क्षण काटते अपने घोंसले में चिड़ी दंपत्ति विवश लाचार पड़े हैं एक- दूसरे की आंखों में देखते हैंपश्चाताप करते हैं क्या सचमुच परिंदे घर को लौट आएंगे?
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