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बतलाते हैं सारे मंज़र ख़ुश हैं सब
अन्दर से है टूटे बाहर ख़ुश हैं सब

देख लो अपनी प्यास छुपाने का अंजाम
बोल रहा है एक समन्दर ख़ुश हैं सब

ज़ख़्मों से दुख दर्द से लेना देना क्या
तोड़ के शीशा मार के पत्थर ख़ुश हैं सब

बाहर बाहर दुख मेरी बर्बादी का
मुझे पता है अन्दर अन्दर ख़ुश हैं सब

टूटी खटिया,बिस्तर, कपड़े कौन रखे
बांट के अपनी माँ के ज़ेवर ख़ुश हैं
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