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{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
घर-घर में
दीये जलाए जा रहे हैं
पटाखें फूट रहे हैं अविराम
अबीर-गुलाल उड़ाये जा रहे हैं बेरोक-टोक
ढोल-मंजीरें बजाए जा रहे हैं जोरदार
मुंह मीठा किया जा रहा है सबका
यह कोई
दीपावली-होली का त्योहार नहीं,
अपने देश द्वारा
अग्नि मिसाइल के सफल परीक्षण की ख़ुशी नहीं
या
भारत द्वारा पाकिस्तान को
क्रिकेट में रौंदे जाने का जलसा भी नहीं
बल्कि अपनी जाति के किसी वीर का
सूबे का मुखिया बन जाने का विजय उत्सव है
भले ही वह
हिटलिस्टेड और मोस्ट वांटेड अपराधी ही क्यों न रहा हो!
</poem>
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घर-घर में
दीये जलाए जा रहे हैं
पटाखें फूट रहे हैं अविराम
अबीर-गुलाल उड़ाये जा रहे हैं बेरोक-टोक
ढोल-मंजीरें बजाए जा रहे हैं जोरदार
मुंह मीठा किया जा रहा है सबका
यह कोई
दीपावली-होली का त्योहार नहीं,
अपने देश द्वारा
अग्नि मिसाइल के सफल परीक्षण की ख़ुशी नहीं
या
भारत द्वारा पाकिस्तान को
क्रिकेट में रौंदे जाने का जलसा भी नहीं
बल्कि अपनी जाति के किसी वीर का
सूबे का मुखिया बन जाने का विजय उत्सव है
भले ही वह
हिटलिस्टेड और मोस्ट वांटेड अपराधी ही क्यों न रहा हो!
</poem>