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नदिया तीरे बैठके गुमसुमसिर झुकाए सिर्फ लहरें गिनेंऔरों की सुनें होकर गुमसुम हम क्यों भला,अपनी कुछ कहें सिर ऊँचा हो तुम्हारा कर गहें आगे ही बढ़ेंकामनाओं से लदीतरणी लेकेभँवर पार करें धारा में बहेंजो बाँट रहे पीड़ा उनसे कहें-साथ नहीं छोड़ेंगे ये हाथ न छोड़ेंगे .
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