भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
मझधार मेंएक नाव थी फँसीसवार आयादेख वो घबरायानाव को लेकेथा किनारे लगाया ।बना गहरा मधुर,विलक्षणप्यारा- सा रिश्ता ।कितने सफ़र थेसंग में किएवो सपने सारे ही साकार हुए ।काँटों की राह चलेपीछे ना हटे ।छूट गए सारे हीसगे- संबंधी ।मासूम वो सवारबड़ा नादानछल-कपट भरी,बेदर्द इसदुनिया से अनजान ।बाज़- सा आयाइक नया सवारउसे कहाँ थाभला इसका ज्ञान।ले गया नाववो दूर देश कहींदोनों हैं खुशतिल-तिल मरताआँसू है पीतापर चुप रहताकभी झील कोमझधार को कभीयूँ अपलकनिहारता रहतावो पुराना सवार।
</poem>