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मा (आठ) / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
मा नांव साचो है
मानै जो मुगत है
गंगा सूं सवायो है
न दंद है ना फंद है
हिवड़ै रो हार है
राम सूं पैली है
श्रीकृष्ण नै गुमान है।

सूरज चानणै रै सागै
चरणां सीस निवावै है
मा री चमक लेय'र चांदो
रात चानणी गावै है।

तीरथ बैठ्या हेला मारै
झोळ्यां भरलै घर बैठै थूं
थारै घर मांय मेळो भरग्यो
थूं रमतिया रमलै भेळो
मा है तीरथ, पगां लागज्या
म्हैं भी मा रै भेळो हूं।
देख समदर बिदक्यै मती
नदी-समदर भेळा हुयग्या
मा री गोद घाट बणग्या
सगळा घाटां रो सिरै घाट है
मा ई जळ री धार चला दी
म्हारा सगळा पाप उतरग्या
नदी-समदर भेळा हुयग्या
मा री गोद सिरै घाट है।
</poem>
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