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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
बण रैयी है अेक हवेली
लांबी अर फूठरी
स्हैर री गळियां मांय
भाटा भेळै, इण हेवली नै सजावतो
कोटगेट रो भायलो।

उण रो नांव नीं जाणै
गांव नीं जाणै हवेली रो सेठ
उण नै इत्तो ईज जाणै
कोटगेट कनै ऊभो रैवै।

बो दिनूगै निगै आयो
कोटगेट री भीड़ मांय
कमती रेट, हामळ भरतो
कपड़ै री गांठड़ी मांय टिफन लियां।

पछै अेक चौकी माथै
बिना बिछावट रै
रात बितावै
अर सुपनां देख नीं सकै पूरा
पुलिस आळा डंडो बजावै
ज्यूं चकळाघर री चौकी में आवै
नींद री वसूली खातर।
</poem>
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