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रेत (चार) / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
रेत अर मिनख रो
अेक सरीखो रंग
सागै-सागै चालै मिनख रै
चावै बादळ सूं टकरावै
कित्ती ऊंची-ऊंची उडै
मिळती-मिळती आय जावै
आपरै मिनखां कनै पाछी।

नीं बदळै खुद
नीं वैवार सूं
सेवट मिळ जावै मिनखां रै सागै
नदी, तळाब सूं
समदर नै आपरो रंग देय देवै।

हिचकोळा खावै समदर री रेत
पाणी रै भेळी
पण साथ नीं छोडै
इण छैड़ै सूं उण छैड़ै
तट सूं छौळ तांई सागै रैवै रेत
मिनख अर रेत रो
अेक सरीखो रंग।
</poem>
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