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दोहे-1 / दरवेश भारती

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वर्षों जीवन जी लिया, आज हुआ महसूस।
काम न कोई बन सके, बिन परिचय, बिन घूस।।
 
दिन-प्रतिदिन है बन रही, राजनीति व्यवसाय।
सेवा-भाव विलुप्त है, लक्ष्य मात्र है आय।।
</poem>
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