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ताते तुम जोरन मोहिं आई॥
बाईजी का जन्म लगभग संवत 1923 में हुआ। इन्होंने अपने समय मे सामयिक पत्रों में समस्या-पूर्त्तियाँ करने में विशेष भाग लिया। इनके सम्बन्ध में एक रोचक प्रसंग उल्लेख-योग्य है। उन्हीं दिनों बलदेवप्रसाद अवस्थी नाम के एक कवि अबध के राजा प्रताप बहादुरसिंह के यहाँ राजकवि के रूप में रहते थे। इनकी भी समस्या-पूर्त्तियाँ बड़ी टकसाली होती थीं। चन्द्रकलाजी पर बलदेव जी की कवित्त्व-शक्ति का बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने उनसे पत्र-व्यवहार करके बूँदी आने के लिए निमंत्रित किया। पत्र के साथ उन्होंने निम्नलिखित सवैया भी लिख भेजी थी:-
दीन-दयाल दया कै मिलो,
चले कौन ये जान लिये मन मो सिर मोर की चन्द्रकला को धरे॥
चन्द्रकलाजी के नायिका-नायक-अंकन में कुछ संकोचहीनता देखी जाती है, जिसका कारण वह वातावरण ही है जो पुरुष-कवियों द्वारा शताब्दियों पहले निर्मित हुआ था और जिसका उस समय भी प्रभाव था।संवत 1960 में बाईजी स्वर्गलोक को सिधार गयीं।