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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
जो देखते हैं दूर से मौजों का तमाशा
वो लोग समंदर में उतर क्यों नहीं जाते

है इनके मुक़द्दर में फ़क़त प्यास ही वरना
बरसात में तालाब ये भर क्यों नहीं जाते

क्यों गर्द उतरती नहीं पत्तों से यहां पर
बारिश में नहाकर ये निखर क्यों नहीं जाते।
</poem>
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