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इन शब्दों में / मनमोहन

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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=जिल्लत ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
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<poem>
इन शब्दों में
वह समय है जिसमें मैं रहता हूँ
इन शब्दों में<br>ग़ौर करने परवह उस समय का संकेत भी यहीं मिल जाता है। जो न होलेकिन मेरा अपना है जिसमें मैं रहता हूँ<br><br>
ग़ौर करने पर<br>उस समय का संकेत भी यहीं मिल जाता है। <br>यहाँ कुछ जगहें दिखाई देंगी जो हाल ही में ख़ाली हो<br>गई हैंलेकिन मेरा अपना है<br><br>और वे भीजो कब से ख़ाली पड़ी हैं
यहाँ कुछ जगहें दिखाई देंगी <br>यहीं मेरा यक़ीन हैजो हाल ही में ख़ाली हो गई हैं<br>और वे भी<br>जो कब से ख़ाली पड़ी हैं<br><br>बाक़ी बचा रहा
यहीं मेरा यक़ीन है<br>यानी जो बाकी बचा रहा<br><br>ख़र्च हो गयावह भी यहीं पाया जाएगा
यानी जो ख़र्च हो गया<br>इन शब्दों मेंवह भी यहीं पाया जाएगा<br><br>मेरी बची-खुची याददाश्त है
इन शब्दों में<br>और जो भूल गया हैमेरी बचीखुची याददाश्त वह भी इन्हीं में है<br><br>
और जो भूल गया है<br>वह भी इन्हीं में है<br><br>कला का पहला क्षण
कला का पहला क्षण<br><br>कई बार आप अपनी कनपटी के दर्द मेंअकेले छूट जाते हैं
कई बार आप <br>और क़लम के बजायअपनी कनपटी तकिये के दर्द नीचे या मेज़ की दराज़ में<br>अकेले छूट जाते दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं<br><br>
और कलम के बजाय<br>बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं हैतकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में<br>लेकिन आप उसे गुज़र न जाने देंदर्द की कोई गोली ढूँढते हैं<br><br>यह भी हमेशा मुमक़िन नहीं
बेशक कई बार एक उत्कट शब्द जो दर्द सिर्फ़ आपका कविता के लिए नहीं किसी से कहने के लिए होता है<br>लेकिन आप उसे गुज़र न जाने दें<br>आपके तालू से चिपका होता हैयह भी हमेशा मुमक़िन और कोई नहीं<br><br>होता आसपास
कई बार एक उत्कट शब्द <br>जो कविता के लिए नहीं<br>किसी से कहने के लिए होता कोई चेहरा याद आता है<br>आपके तालू से चिपका होता है<br>और या कोई नहीं होता आसपास <br><br>पुरानी शाम
कई बार शब्द नहीं<br>कोई चेहरा याद आता है<br>या कोई पुरानी शाम<br><br> और आप कुछ देर<br>कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए<br>भाई, हर बार रुपक ढूँढ़ना या गढ़ना <br>मुमक़िन नहीं होता<br>कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है<br>कि दिल ज़हर में डूबा रहे<br>और आँखें बस कड़वी हो जायेंजाएँ</poem>
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