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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=जिल्लत ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
}}
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<poem>
एक आदमी
कम कहता है
और कम साँस लेता है
कम सुनता हँसता है<br>और कम देखता रोता है<br><br>
कम हँसता चलता है<br>और कम रोता लौट आता है<br><br>
कम चलता याद करता है<br>और लौट आता बार-बार भूल जाता है<br><br>
और रहे जाता है
</poem>