भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हंस हँस कर रह जाती थी
जबकि
वे समझते थे
कि अंततः अन्ततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया !
</poem>