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|रचनाकार=सागर साग़र सिद्दीकी|अनुवादक=
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ऐ हुस्न-ए-लाला-फ़ाम ! ज़रा आँख तो मिला
ख़ाली पड़े हैं जाम! ज़रा आँख तो मिला
ये जाम, ये सुबू, वो ये तसव्वुर की चांदनीचाँदनी साक़ी कहाँ मदाम मुदाम ! ज़रा आँख तो मिला
हैं राह-ए-कहकशाँ में अज़ल से खड़े हुए
'साग़र' तिरे ग़ुलाम ! ज़रा आँख तो मिला
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