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|रचनाकार=जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'
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<poem>
कॉल...जब उसकी आख़िरी आयी
दिल पे क्या गुज़री क्या घड़ी आयी

इक तवक़्क़ो थी ...मौत आएगी
मुझ पे आयी तो ज़िन्दगी आयी

मेरी क़िस्मत ख़राब है इतनी,
मेरे हिस्से में ... बेख़ुदी आयी

मिरे सारे ......अंधेरे लूट लिए
जब मेरी सिम्त रोशनी आयी

हमने ज़ुल्फ़ें घनी सँवारीं हैं
हमपे यूँ ही न शाइरी आयी

माज़ी ने उसका ज़िक्र छेड़ दिया
और फिर.. याद वो बड़ी आयी

उस से कहते थे हम तो जी लेंगे
और मुश्क़िल नयी - नयी आयी

उसकी शादी भी हो गई परसों
मौत.. हमको भी 'दूसरी' आयी

जो कभी होश बाँटता था.. वीर'
उसके हिस्से में 'मयकशी' आयी

'वीर' को गुज़रे इक ज़माना हुआ
याद फिर ..उसकी शाइरी आयी
</poem>
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