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{{KKRachna
|रचनाकार=सईद राही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अपने ख़्वाबों को तेरी आँख में जलता देखूँ
मेरी हसरत है तुझे नींद में चलता देखूँ
मेरा मिटना तो बस इक रात का क़िस्सा है मगर
मैं तुझे रोज़ शमा बन के पिघलता देखूँ
ये मेरा वहम हैं या तेरी तज्जली का कमाल
इक सूरज तेरे चेहरे से निकलता देखूँ
ख़्वाब किस जुर्म की ख़ातिर मुझे आते हैं नज़र
अपने पैरों से फूलों को मसलता देखूँ
हो न ऐसा के मेरी आह असर कर जाए
घर तेरा पहली ही बरसात में जलता देखूँ
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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अपने ख़्वाबों को तेरी आँख में जलता देखूँ
मेरी हसरत है तुझे नींद में चलता देखूँ
मेरा मिटना तो बस इक रात का क़िस्सा है मगर
मैं तुझे रोज़ शमा बन के पिघलता देखूँ
ये मेरा वहम हैं या तेरी तज्जली का कमाल
इक सूरज तेरे चेहरे से निकलता देखूँ
ख़्वाब किस जुर्म की ख़ातिर मुझे आते हैं नज़र
अपने पैरों से फूलों को मसलता देखूँ
हो न ऐसा के मेरी आह असर कर जाए
घर तेरा पहली ही बरसात में जलता देखूँ
</poem>