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<poem>

जग के इन सुख-स्वप्नों की है,
कुछ भी मुझको चाह नहीं।
आज विदा मायाविनि आशे,
उर में तेरी राह नहीं।

विपुल विघ्न बाधाएँ आएँ,
फूल-सदृश स्वागत होगा।
समय पड़े पर फाँसी का भी,
हँस-हँस आलिंगन होगा।

माता के प्रिय पद-पह्मों पर,
जीवन का यह सुरभित फूल।
आज समर्पण करने को,
आयी हूँ अपनी सुध-बुध भूल।

</poem>
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