भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
धरती का यौवन हैं
मानव का जीवन हैं
हरे-भरे पेड़
सूरज से
सारा दिन
जमकर ये लड़ते हैं
तब जाकर
किरणों से
शक्कर ये गढ़ते हैं
धरती पर
ये क्षमता
केवल वृक्षों में है
जीवन की
सब ऊर्जा
इनके पत्तों से है
इस भ्रम में मत रहना
केवल ऑक्सीजन हैं
हरे भरे पेड़
वृक्षों के बिन भी
भू का कुछ न बिगड़ेगा
लेकिन जीवन का तरु
जड़ से ही उखड़ेगा
घरती के
आँचल में
तरु फिर से पनपेंगे
पर हम मिट जाएँगें
गर ये न समझेंगे
जीवन का सावन हैं
तीर्थों से पावन हैं
हरे भरे पेड़
</poem>