भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इतनी ख़राबियाँ भीतर थीं
कि एक भी ख़ूबी बाहर नहीं दीखी
दीवारों पर सट कर लगे थे चित्र
दूर उनके विवरण पड़े थे
बेमेल चीज़ों से भरी मेज पर
मुद्दत से बे-समेटा था असबाब
तस्वीर में भी तरेरता आँखें
वह जन्मों का बैरी
बग़ल की
मुँह-सिली औरत का पति है
औरत चुपचाप कहीं निकल गई है-
इस वक़्त सबसे अधिक ख़तरा
उसे घर में है
तस्वीर वाला आदमी कुछ तरकीबें सुझाता है
भीतर के जासूस को,
जानता बस वह कुत्ता है
जो किसी खटके की टोह में जा छिपा मेज तले
बस, उसी को पता है
कब, कहाँ से लौटेगी औरत
पुराने दरवाजे़ से होती हुई।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इतनी ख़राबियाँ भीतर थीं
कि एक भी ख़ूबी बाहर नहीं दीखी
दीवारों पर सट कर लगे थे चित्र
दूर उनके विवरण पड़े थे
बेमेल चीज़ों से भरी मेज पर
मुद्दत से बे-समेटा था असबाब
तस्वीर में भी तरेरता आँखें
वह जन्मों का बैरी
बग़ल की
मुँह-सिली औरत का पति है
औरत चुपचाप कहीं निकल गई है-
इस वक़्त सबसे अधिक ख़तरा
उसे घर में है
तस्वीर वाला आदमी कुछ तरकीबें सुझाता है
भीतर के जासूस को,
जानता बस वह कुत्ता है
जो किसी खटके की टोह में जा छिपा मेज तले
बस, उसी को पता है
कब, कहाँ से लौटेगी औरत
पुराने दरवाजे़ से होती हुई।
</poem>