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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
चिराग़ दिल का म़ुकाबिल हवा के रखते हैं
हर एक हाल में तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते हैं

हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं

कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती, कहीं पे व़फा
बड़े करीने से घर को सजा के रखते हैं

अनापसंद हैं `हस्ती' जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं
</poem>